अंकुर शर्मा का जन्म 1986 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में हुआ था। इनकी माता और पिता दोनों ही राज्य सरकार के साथ काम कर चुके हैं।
अंकुर शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा कठुआ जिले से ही हुई। पुणे विश्वविद्यालय से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग (IT) में B.E. की डिग्री प्राप्त की एवं दिल्ली विश्वविद्यालय से L.L.B. की डिग्री प्राप्त की।
कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू किया और अंकुर शर्मा ने राष्ट्रहित के विरुद्ध बनाये गये अनेक हिन्दू विरोधी कानूनों का कड़ा विरोध किया।
नीचे कुछ मामले सूचीबद्ध हैं जो अंकुर शर्मा ने विभिन्न भारतीय अदालतों में दायर किए हैं।
2014 में उन्होंने सरकारी भूमि के स्वामित्व अधिकारों से संबंधित 25,000 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले के संबंध में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में CMP-48 दायर किया। इसके तत्वावधान में अंकुर शमन ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि घोटाले की जांच सी.बी.आई. को सौंपी जाए। लम्बी लड़ाई लड़ने के बात, अंततोगत्वा, अक्टूबर 2020 में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए इस केस की जांच सी.बी.आई. को सौंप दी।
जम्मू और कश्मीर में भूमि घोटाला सीधे भूमि जिहाद से जुड़ा हुआ था जिसका उद्देश्य हिंदू बहुसंख्यक क्षेत्रों की जनसांख्यिकी को तेजी से बदलना था।
रोशनी अधिनियम के तहत सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा करने वालों को मालिकाना हक देने का प्रावधान था। यह जम्मू-कश्मीर का इस्लामीकरण करने के उद्देश्य से बनाया गया कानून था।
रोशनी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए, अंकुर शर्मा ने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के जम्मू मंडल में ‘अंकुर शर्मा बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य और अन्य’ शीर्षक से एक रिट याचिका 41/2014 दायर की। ये केस भी 6 साल तक चला और आखिरकार फैसला अंकुर शर्मा के पक्ष में आया।
जून 2016 में, अंकुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इसलिए उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए (पीआईएल 489/2016, अंकुर शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य)
इस मामले में भी, निर्णय अंकुर शर्मा के पक्ष में गया, जो विडंबना यह है कि केंद्र सरकार द्वारा ‘तृप्तिकरण‘ की नीति के कारण इसे जमीन पर लागू नहीं किया गया।
अंकुर शर्मा जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में श्री माता वैष्णो देवी जी मंदिर के राज्य नियंत्रण को चुनौती देते हुए एक मामला लड़ रहे हैं।
राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली भाजपा सरकार ने यह रुख अपनाया है कि हिंदुओं को माता वैष्णो देवी जी मंदिर का नियंत्रण नहीं दिया जा सकता है।मामला उच्च न्यायालय के समक्ष बहस के अंतिम चरण में है।
इसके अलावा, सार्वजनिक बैठकों, विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से इस मुद्दे पर जागरूकता और लामबंदी भी एक ऐसी चीज है जिसमें इक्कजट जम्मू पार्टी के कैडर लगातार लगे हुए हैं।
२०१८ में अंकुर शर्मा ने जम्मू-कश्मीर में नौकरशाही जिहाद का पर्दाफाश किया था।
अंकुर शर्मा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जम्मू-कश्मीर सरकार के दिनांक 14.02.2018 के एक गुप्त वर्गीकृत दस्तावेज़ को सार्वजनिक डोमेन में साझा किया। इस आदेश के माध्यम से, पीडीपी-भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री ने आदिवासी मुसलमानों को भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण करने की अनुमति दी थी। गौहत्या और गोजातीय तस्करी में संलग्न। जिला मजिस्ट्रेटों और एसएसपी को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया था कि वे ऐसे मुसलमानों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई न करें।
अंकुर सरमा ने कठुआ बाल हत्या मामले में सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा की गई हिंदुओं और डोगराओं की मानहानि में डोगरा और हिंदू गौरव का बचाव किया।
फिर कुख्यात कठुआ बाल हत्याकांड को लेकर भी अंकुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि इस मामले की सीबीआई जांच कराई जाए। हालांकि, उनकी मांग खारिज कर दी गई। कठुआ रेप केस किस तरह जिहादियों द्वारा सनातन सभ्यता और संस्कृति की छवि को धूमिल करने की एक बड़ी साजिश थी, इसे लेकर अंकुर शर्मा ने काफी ग्राउंडवर्क किया।
“रोशनी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया और अधिनियम में आवंटित भूमि को वापस लेने का आदेश दिया गया”